फूलि आस पास काँस विमल विकास
phuuli aas paas kaa.ns vimal vikaas
फूलि आस पास काँस विमल विकास
बास रहा न निकासी कहूँ महिमे गरद की।
राजत कमल दल ऊपर मधुप मैन
छपसी दिखाई छबि बिरह फरद की॥
‘श्रीपति’ रसिकलाल आली बन माली
बिनु कछू ना जुगुति मेरे जीय के दरद की।
हरद समान तन भयो है जरद अब
करदसी लागत है चाँदनी सरद की॥
- पुस्तक : हिंदी काव्य गंगा (प्रथम भाग) (पृष्ठ 248)
- संपादक : सुधाकर पांडेय
- रचनाकार : श्रीपति
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी
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