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पतियाँ पठाये अश्रुपात तौ भलै पै होत

patiyan pathaye ashrupat tau bhalai pai hot

आलम

आलम

पतियाँ पठाये अश्रुपात तौ भलै पै होत

आलम

और अधिकआलम

    पतियाँ पठाये अश्रुपात तौ भलै पै होत,

    बतियनि बिरह बितैबो कछू हाँसी है।

    ‘आलम’ निरास बैन सुने कौन जोरै नैन,

    हिये को कठिन ऐसो कौन ब्रजबासी है।

    ऊधो ये संदेसे जैये बाही चितचोर पै लै,

    आपुन कठिन भये और को बिसासी है।

    यहाँ लौन आयै नेकु बाँसुरी सुनावै आनि,

    बिनसैगो कहा आये जो पै अविनासी है॥

    गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि प्रियतम को पत्र भेजते समय नेत्रों से अश्रु प्रवाहित होते हैं, जलन पीड़ा होती है। यह सब तो स्वाभाविक है, किंतु केवल विरह की बातें कर-करके समय व्यतीत करना आसान काम नहीं है। यहाँ ब्रज में तो ऐसा कोई भी कठोर हृदय वाला नहीं है जो आँखें मूँद कर तुम्हारी निराशा से भरी हुई बातें सुने। हे उद्धव! तुम हमारा यह संदेश हमारे मन को चुरा लेने वाले उन कृष्ण तक ले जाना। वे तो इतना कठोर मन हो बैठे हैं कि उन्हें हमारी याद ही नहीं आती है। उनके जैसा विश्वासघाती और कौन हो सकता है जो वचन देकर भी वापस नहीं लौटे? तो वे यहाँ तक आते हैं और ही थोड़ी बाँसुरी बजाकर सुनाते हैं। वे यदि यहाँ भी जाएँ, तो उनका क्या बिगड़ जाएगा? वे तो अविनाशी हैं। उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आलम ग्रंथावली (पृष्ठ 75)
    • संपादक : विद्यानिवास मिश्र
    • रचनाकार : आलम
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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