सारंग धुनि सुनावै घन रस बरसावै
sarang dhuni sunawai ghan ras barsawai
सारंग धुनि सुनावै घन रस बरसावै,
मोर मन हरषावै अति अभिराम है।
जीवन अधार बड़ी गरज करनहार,
तपति हरनहार देत मन काम है॥
सीतल सुभग जाकी छाया जग सेनापति,
पावत अधिक तन मन बिसराम है।
संपै संग लीने सनमुख तेरे बरसाऊ,
आयौ घनस्याम सखि मानौं घनस्याम है॥
वर्षा ऋतु में बादल बहुत पानी बरसाते हैं और सारंग की सी ध्वनि करते हैं। मोर बड़े सुंदर लगते हैं और वे बादल घिरने पर मन में बड़े प्रसन्न होते हैं। बादल वर्षा जल देने के कारण जीवन के आधार कहे जाते हैं। पानी उनमें ही रहता है। वे वर्षा ऋतु में बड़ी गर्जना करते हैं। बादलों से ग्रीष्म की तपन समाप्त हो जाती है। वर्षा ही ग्रीष्म की तपन को दूर करती है। बादलों से मन में काम भावना में वृद्धि होती है। बादल छाये रहने से सुहावनी शीतल छाया बनी रहती है जिससे मन और शरीर दोनों को ही विश्राम मिलता है। ग्रीष्म ऋतु में ऐसा नहीं होता। काले बादल बिजली और वर्षा को साथ लिए रहते हैं। वे ऐसे लगते हैं मानो श्याम वर्ण के कृष्ण हों। कृष्ण भी श्याम वर्ण के हैं। वे मोर पंख मुकुट में धारण करते हैं। वे आनंद के दाता हैं। वे ही सबके जीवन के आधार हैं। वे दैहिक, दैविक, भौतिक तापों का नाश करने वाले हैं और मनोकामनाएँ पूरी करने वाले हैं। उनकी छत्रछाया में ही सारा संसार है। उनका सान्निध्य तन और मन को विश्राम देने वाला है। वे काले बादलों के-से रंग के हैं। इस प्रकार उनमें और काले बादलों में बड़ी समानता है।
- पुस्तक : कवित्त रत्नाकर (पृष्ठ 3)
- रचनाकार : सेनापति
- प्रकाशन : हिंदी परिषद् प्रकाशक, प्रयाग
- संस्करण : 1971
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