जौहीं भौंह भीजी आँखि ताकि है जु तीजिये से
jauhin bhaunh bhiji ankhi taki hai ju tijiye se
जौहीं भौंह भीजी आँखि ताकि है जु तीजिये से,
जीबी कहे ज्याइ है अमर पद आइ लै।
अंबर पखारे ते दिगंबर बनै है तोहि,
छलक छुआये गज छाल तन छाइ लै।
‘सेख’ कहै श्रापी कोऊ जैनी है कि जापी बड़ो,
पापी है तो नीर पैठि नागन लबाय लै।
अंब बोरि गंग में निहंग ह्वै कै बेगि चलि,
आगे आउ मैल धोइ बैल गैल लाइ लै॥
भौहिं तिरछी करके, आँखों को भिगोकर एक विशेष अंदाज़ से देखते हुए जीभ से ऐसे शब्द उच्चारण करें जो सीधे स्वर्ग दिलाएँ। जो व्यक्ति गंगा के जल से वस्त्र धोते हैं, वे साक्षात् शिवजी बनते हैं और जो गंगा-जल का स्पर्श करते हैं वे शरीर पर गजचर्म धारण करने वाले श्रेष्ठ महात्मा बन जाते हैं। आलम शेख़ को संबोधित कर कहते हैं कि कोई शाप-ग्रस्त जैनी हो या बड़ा तपस्वी! यदि वह पापी है तो उसे गंगा के पानी में उतर जाना चाहिए। इससे वह पाप-रूपी नागिन से छुटकारा पा सकता है। गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं। इसलिए गंगा में स्नान करके, अहंकार को छोड़कर, मन का मैल साफ़ करते हुए धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए।
- पुस्तक : आलम ग्रंथावली (पृष्ठ 89)
- संपादक : विद्यानिवास मिश्र
- रचनाकार : आलम
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2015
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