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रेखै सी करत अंग अंगन असेखै पेखै

rekhai si karat ang angan asekhai pekhai

सरदार कवि

सरदार कवि

रेखै सी करत अंग अंगन असेखै पेखै

सरदार कवि

और अधिकसरदार कवि

    रेखै सी करत अंग अंगन असेखै पेखै,

    डार कचनार वारी सुमन सहेजे में।

    पवन परेखे प्राण पव जनु पारे हारे,

    साहस अचूक बेग अजब अमेजे में॥

    कवि सरदार वृक्ष अति पतिझार भये,

    बैठ के हौ काटे रैनि तन बिन रेजे में।

    कोयल कुरूप कूक करत कुवेष बीर,

    बिना राम देखै मेखै मारत करेजे में॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : षट्ऋतु हज़ारा (पृष्ठ 73)
    • संपादक : परमानंद सुहा
    • रचनाकार : सरदार कवि
    • प्रकाशन : नवलकिशोर प्रेस
    • संस्करण : 1894

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