राजे रस मैरी तैसी बरषा समैरी चढ़ी
raje ras mary taisi barsha samairi chaDhi
कवींद्र (उदयनाथ)
Kavindr (Udaynath)
राजे रस मैरी तैसी बरषा समैरी चढ़ी
raje ras mary taisi barsha samairi chaDhi
Kavindr (Udaynath)
कवींद्र (उदयनाथ)
और अधिककवींद्र (उदयनाथ)
राजे रस मैरी तैसी बरषा समैरी चढ़ी,
चंच लान चैरी चक चौंधा कौंधा वारै री।
पतिव्रत हारै हिये परत फुहारै कछु,
छोरै कछु धारैं जल धर जल धारै री॥
भनत कवींद्र कुंज भौन पौन सौरभ सों,
कौन को कँपाय के न पर हथ पारै री।
कामकेतु कासे फूलि डोलि-डोलि डारै मन,
और किये डारै ये कदंबन की डारै री॥
- पुस्तक : षट्ऋतु हज़ारा (पृष्ठ 147)
- संपादक : परमानंद सुहा
- रचनाकार : कवींद्र
- प्रकाशन : नवलकिशोर प्रेस
- संस्करण : 1894
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