पूंछत कहा हौ मो पै साँवरे कुंवर कान्ह
punchhat kaha hau mo pai sanware kunwar kana
पंडित भैरवप्रसाद वाजपेयी 'विशाल'
Bhairavprasad Vajpeyi 'vishal'
पूंछत कहा हौ मो पै साँवरे कुंवर कान्ह
punchhat kaha hau mo pai sanware kunwar kana
Bhairavprasad Vajpeyi 'vishal'
पंडित भैरवप्रसाद वाजपेयी 'विशाल'
और अधिकपंडित भैरवप्रसाद वाजपेयी 'विशाल'
पूंछत कहा हौ मो पै साँवरे कुंवर कान्ह,
काल्हि हौं गई ही वृषभानु की कुमारी के।
पाय के यकंत अति प्यार सों सनेहमयी,
रावरे हवाल ज्यों सुनायो सब यारी के॥
भनत विशाल इत आइबे को कीन्ह्यों मन,
तदपि चले न बर अंग सुकुमारी के।
कैसे करि लाऊँ तुव पास हौं पियारे लाल,
जावक के भार पग उठत न प्यारी के॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 523)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : भैरवप्रसाद वाजपेयी 'विशाल'
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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