फूट गये हीरा की बिकानी कनी हाट-हाट
phoot gaye hira ki bikani kani hat hat
फूट गये हीरा की बिकानी कनी हाट-हाट,
काहू घाट मोल काहू बाढ़ मोल को लयो।
टूट गई लंका फूट मिल्यो जो विभीषन है,
रावन समेत बंश आसमान को गयो॥
कहैं कवि गंग' दुरजोधन से छत्रधारी,
तनक में फूटें तें गुमान वाको नै गयो।
फूटे ते नरद उठि जात बाजी चौसर की,
आपस के फूटे कहु कौन को भलो भयो॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 61)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : गंग
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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