नारिन के कारज करि जानति न नीके तैं
narin ke karaj kari janati na nike tain
पंडित युगलकिशोर मिश्र
Pandit Yugalkishor Mishra
नारिन के कारज करि जानति न नीके तैं
narin ke karaj kari janati na nike tain
Pandit Yugalkishor Mishra
पंडित युगलकिशोर मिश्र
और अधिकपंडित युगलकिशोर मिश्र
नारिन के कारज करि जानति न नीके तैं,
अनारिन के साथ सीखे कारज अनारी के।
गाढ़े करि छान्यो लाख लाखिमा मिलान्यो रह्यो,
हाय! कैसे लेख लिखे निपट गँवारी के।
रंगन सुरंग लसै गहिरी ललाई अति,
सुलुप सुठारि अंग संगिनी हमारी के।
हा! हा! हठि नाइनि निहारु तौ निहोरे लेखु,
जावक के भार पग उठत न प्यारी के॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 490)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : पंडित युगलकिशोर मिश्र
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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