मोती कल गंग नील सारी कालिंदी को संग
moti kal gang neel sari kalindi ko sang
मोती कल गंग नील सारी कालिंदी को संग,
डर्यो लाल रंग रूप भारती को भरिगो।
सेवक भनत कै हियो को अनुराग जागि,
उमगि अदांग आज ऊपर उघरिगो॥
ललकि ललानेमूठि बादला की मारी तापै,
सनख उरोज पर ऐसो अनुसरिगो।
मानो भानु पूर कला आपनी को सूरमानि,
ह्वै के चंद्रचूर चंदचूड़ पै बगरिगो॥
- पुस्तक : षट्ऋतु हज़ारा (पृष्ठ 70)
- संपादक : परमानंद सुहा
- रचनाकार : सेवक
- प्रकाशन : नवलकिशोर प्रेस
- संस्करण : 1894
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