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मोहे जल मीन मृग सावक अधीन भये

mohe jal meen mrig sawak adhin bhaye

पुहकर

पुहकर

मोहे जल मीन मृग सावक अधीन भये

पुहकर

और अधिकपुहकर

    मोहे जल मीन मृग सावक अधीन भये,

    चंचल विसालनी के नैन-नैन त्रीय के।

    कुटिल कटाछ बान भाल तै विसेखियतु,

    हितु करि हरहि हरन हार हीय के॥

    अंजन के दीये दृग खंजन लजानै वन,

    कंजन समान मन रंजन हैं पीय के।

    पहुकर कहै लोल लोचन ललित लाज,

    प्रेम रस पीवनि कै जीवनि हैं जीय के॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : रसरतन (पृष्ठ 175)
    • संपादक : शिवप्रसाद सिंह
    • रचनाकार : पुहकर
    • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, काशी
    • संस्करण : 1963

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