मिलि चलौ मिली चलौ मिलि चले सुख महा
mili chalau mili chalau mili chale sukh maha
हरिव्यास देव
Harivyas dev
मिलि चलौ मिली चलौ मिलि चले सुख महा
mili chalau mili chalau mili chale sukh maha
Harivyas dev
हरिव्यास देव
और अधिकहरिव्यास देव
मिलि चलौ मिली चलौ मिलि चले सुख महा,
बहुत है विघन जग मगहि माहीं।
मिलि चले सकल मंगल मिले सहजहीं,
अनमिलि चले सुख नहिं कदाहीं।
मिलि चले होत सो अनमिलि चले कहाँ?
फूट ते होत है फटफटाहीं।
‘श्रीहरिप्रिया’ जू को यह परम-पद पावनो,
अतिहि दुर्लभ महा सुलभ नाहीं॥
- पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 293)
- संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रचनाकार : हरिव्यास देवाचार्य
- प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
- संस्करण : जनवरी 1955
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