मेरी चित चाह तें मिटो है उरदाह पिय
meri chit chah ten mito hai urdah piy
कुलपति मिश्र
Kulpati Mishra
मेरी चित चाह तें मिटो है उरदाह पिय
meri chit chah ten mito hai urdah piy
Kulpati Mishra
कुलपति मिश्र
और अधिककुलपति मिश्र
मेरी चित चाह तें मिटो है उरदाह पिय,
आए हरबरै पायँ धारे भय मन के।
सीतल समीर लागै कंपति है गात यातें,
बातें तुतरात हौ रखैया निज पन के॥
देखें छबि आज भूलि गए दुख साज कोटि,
कोटि जुग वारि डारौं ऊपर या छन के।
पूष की निसा में लाल आए मोसों प्यार करि,
करौ हौं बयारि सूखैं स्वेद कन तन के॥
- पुस्तक : हिंदी काव्य गंगा (प्रथम भाग) (पृष्ठ 231)
- संपादक : सुधाकर पांडेय
- रचनाकार : कुलपति मिश्र
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी
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