निपट निदरि बोले वचन कुठारपानि
nipat nidari bole wachan kutharpani
निपट निदरि बोले वचन कुठारपानि,
मानि त्रास औनिपन मानौ मौनता गही।
रोपे मापे लखन अकनि अनखौहीं बातैं,
तुलसी बिनीत बानी बिहँसि ऐसी कही॥
सुजस तिहारो भरो भुवननि भृगुनाथ!
प्रगट प्रताप आपु कहौ सो सबै सही।
टूट्यौ सो न जुरैगो सरासन महेसजू को,
रावरी पिनाक में सरीकता कहा रही॥
परशुराम जी ने अत्यंत अपमानजनक बात कही। उसे सुनकर राजा लोग ऐसे भयभीत हो गए मानो वे मौनव्रत धारण किए हों। तुलसीदास जी कहते हैं कि उनकी खिझानेवाली बातें सुनकर लक्ष्मण जी क्रुद्ध हो उठे; परंतु हँसकर नम्र वचन इस प्रकार बोले—हे परशुराम जी, आपका सुयश सभी लोकों में व्याप्त है, आपका प्रताप प्रकट है, आप जो कुछ कहते हैं सब सही है। परंतु शिवजी का जो धनुष टूट गया है वह अब जुड़ नहीं सकता। क्या इस धनुष में आपका साझा था?
- पुस्तक : कवितावली (पृष्ठ 19)
- संपादक : देवीनारायण द्विवेदी
- रचनाकार : तुलसीदास
- प्रकाशन : एस.बी.सिंह, काशी-पुस्तक-भंंडार, बनारस
- संस्करण : 1999
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