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मरम न खोलैं खरी भरम न बोलैं कछु

maram na kholain khari bharam na bolain kachhu

लछिराम

लछिराम

मरम न खोलैं खरी भरम न बोलैं कछु

लछिराम

और अधिकलछिराम

    मरम खोलैं खरी भरम बोलैं कछु,

    अजब अतोलैं पीर हीयरै धरी रहै।

    खान-पान सौरभ सिंगारहु सँवारे कौन,

    स्वास में सहेलिन की मति भरमी रहै।

    लछिराम कीरति कुमारी छाम तन-मन,

    ज्वाला मुखी विरह लपट लहरी रहै।

    सौंरि कर साँवरे विहार परमानंद को,

    पौरि पर पोखराज माला सी परी रहै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 436)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : लछिराम
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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