मख राखिबेके काज राजा मेरे संग दए
makh rakhibeke kaj raja mere sang de
मख राखिबे के काज राजा मेरे संग दए,
जीते जातुधान जे जितैया बिबुधेस के।
गौतम की तीय तारी, मेटे अघ भूरि भारी,
लोचन-अतिथि भए जनक जनेस के॥
चंड बाहुदंड बल चंडीस-कोदंड खंड्यो,
ब्याही जानकी, जीते नरेस देस-देस के।
साँवरे-गोरे सरीर, धीर महावीर दोऊ,
नाम राम-लखन, कुमार कोसलेस के॥
विश्वामित्र ने कहा—महाराज दशरथ ने यज्ञ की रखवाली करने के लिए इन्हें मेरे साथ कर दिया है। इन्होंने उन राक्षसों (मारीच सुबाहु आदि) को जीता है जो इंद्र को भी जीतनेवाले थे। इन्होंने गौतम की स्त्री का, उसके बड़े भारी पाप को नष्ट करके उद्धार किया और ये यहाँ राजा जनक के नेत्रों के अतिथि हुए अर्थात् ऐसे अतिथि हैं जिन्हें जनक जी आँख की पुतली के समान समझते हैं। यहाँ इन्होंने अपने प्रचंड भुजबल से शिव-धनुष को तोड़ा है और देश देशांतर के राजाओं को जीतकर जानकी जी को ब्याहा है। ये साँवरे और गोरे शरीर वाले दोनों बड़े ही वीर और धीर हैं; इनका नाम राम और लक्ष्मण है और ये महाराज दशरथ के पुत्र हैं।
- पुस्तक : कवितावली (पृष्ठ 21)
- संपादक : देवीनारायण द्विवेदी
- रचनाकार : तुलसीदास
- प्रकाशन : एस.बी.सिंह, काशी-पुस्तक-भंंडार, बनारस
- संस्करण : 1999
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