मकर उरग भारे सोहत दतारे कारे
makar urag bhare sohat datare kare
मकर उरग भारे सोहत दतारे कारे,
कच्छ रथ स्वच्छ गति राजत उतंगिनी।
भाँति-भाँति पैदर सुकांति जलचर जेते,
चंचल चपल मीन तरल तुरंगिनी॥
लेखराज पाप कोट वोट कोट-कोट चोट,
करत गरद रद कुपथ कुटुंगिनी।
कलि कुल गंजनी यमादि सुख भंजनी है,
सैन चतुरंगिनी सु देवकी तरंगिनी॥
- पुस्तक : गंगाभरण (पृष्ठ 9)
- रचनाकार : लेखराज मिश्र
- प्रकाशन : कृष्णविहारी मिश्र
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