लोभ सौ न अवगुन पिसुनता सौ पातक न
lobh sau na awgun pisunta sau patak na
लोभ सौ न अवगुन पिसुनता सौ पातक न
साँच सौ न तप नाहिं इरिषा सौ दहनौ।
सुचि सौं न तीरथ सजनता सौ सेवक न
चाह सौ न रोग तीन लोक माझ रहनौ।
धरम सौ न मीत न दुरत जीव घातक सौ
काम सौ प्रबल नाहि दत्तब सौ लहनौ।
चिन्ता सौं न साल देवीदास सब लोक कहै
संतोष सौं सुख नाहि कीरति सौं गहनौ॥
- पुस्तक : राजनीति के कवित्त (पृष्ठ 122)
- संपादक : महेंद्रनाथ दुबे
- रचनाकार : देवीदास
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 1999
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