लक्ख चौरासी जोनि जन्म धरि तिहूँ लोक
lakkh chaurasi joni janm dhari tihun lok
रामगुलाम द्विवेदी
Ramgulam Dwivedi
लक्ख चौरासी जोनि जन्म धरि तिहूँ लोक
lakkh chaurasi joni janm dhari tihun lok
Ramgulam Dwivedi
रामगुलाम द्विवेदी
और अधिकरामगुलाम द्विवेदी
लक्ख चौरासी जोनि जन्म धरि तिहूँ लोक,
कर्म के प्रवाह परि भ्रमि सब आयो रे।
सबु मित्र स्वामी सुत सेवक जनक जाया,
मात भ्रात भली बिधि विपुल बनायो रे॥
रूप रस गंध औ परस रस मध्य मन,
श्रुति त्वचा नैन जिह्वा नासिका लगायो रे।
वदत 'गुलामराम' राम की सपथ तोहि,
राम ते विमुख कहु कहूँ सुख पायो रे॥
- पुस्तक : कवित्त-रामायण (पृष्ठ 65)
- संपादक : महावीरप्रसाद मालवीय वैद्य
- रचनाकार : रामगुलाम द्विवेदी
- प्रकाशन : बेलविडियर प्रेस, प्रयाग
- संस्करण : 1924
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