कुंदन की छरी आबनूस की छरी सों मिली
kundan ki chhari abnus ki chhari son mili
कालिदास त्रिवेदी
Kalidas Trivedi
कुंदन की छरी आबनूस की छरी सों मिली
kundan ki chhari abnus ki chhari son mili
Kalidas Trivedi
कालिदास त्रिवेदी
और अधिककालिदास त्रिवेदी
कुंदन की छरी आबनूस की छरी सों मिली,
सोनजुही माल कैधों कुबलय हार सों।
कैधौं चंदकलिका कलंक सों कलित भई,
कैधों रति ललित बलित भई मार सों॥
कालिदास कादंबिनी दामिनि मिली है कैधौं,
अनल की ज्वाल मिल गई धूम-धार सों।
केलि समै कामिनी कन्हैया सों लपटि रही,
मानों लपटानी है जुन्हैया अन्धकार सों॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 181)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : कालीदास
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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