Font by Mehr Nastaliq Web

कुटिल! गाफिल होत मन न इतै देत

kutil! gaphil hot man na itai det

सरसदेव

सरसदेव

कुटिल! गाफिल होत मन न इतै देत

सरसदेव

कुटिल! गाफिल होत मन इतै देत,

काहे अचेत भए जरत है भरम सौं।

और कोउ सुहाउ प्रभु के सरन आउ,

औसर महा चुकाउ समझ लै मन सौं॥

काहे कौं मरत वहि श्रीवृंदावन बस रहि,

सरस साहिब कहि लाड़िली ललन सौं।

तन-धन सब गयौ काम-क्रोध-लोभ नयौ,

चौंक परयौ तब जब काम परयौ जम सौं॥

स्रोत :
  • पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 290)
  • संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
  • रचनाकार : सरसदेव
  • प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
  • संस्करण : जनवरी 1955

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY