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बिप्र के भगत हरि जगत-बिदित-बंधु

bipr ke bhagat hari jagat bidit bandhu

नरोत्तमदास

नरोत्तमदास

बिप्र के भगत हरि जगत-बिदित-बंधु

नरोत्तमदास

और अधिकनरोत्तमदास

    बिप्र के भगत हरि जगत-बिदित-बंधु,

    लेते सब ही की सुधि ऐसे महादानि हैं।

    पढ़े एक चटसार कही तुम कैयों बार,

    लोचन अपार वै तुम्हें पहिचानिहैं?

    एक दीनबंधु, कृपासिंधु फेरि गुरुबंधु,

    तुम-सम कौन दीन जाकौ जिय जानिहैं?

    नाम लेत चौगुनी, गए ते द्वार सौगुनी सो,

    देखत सहस्र गुनी प्रीति प्रभु मानिहैं॥

    सुदामा की पत्नी अपने पति से कहती है कि श्रीकृष्ण ब्राह्मणों के भक्त हैं, संसार प्रसिद्ध दीनबंधु अर्थात दीनों का पालन करने वाले हैं। वे महादानी हैं और सभी की सुधि लेने वाले हैं। कई बार आप कह चुके कि वे आपके साथ एक ही पाठशाला में पढ़े हैं। यह कभी नहीं हो सकता कि असंख्य नेत्रों वाले कृष्ण आपको पहचानें। आप दीन हैं, वे दीनबंधु हैं। आप जैसा और कौन दीन-हीन होगा, जिसे वे अपने मन में नहीं जानेंगे? आपका नाम सुनकर वे चार गुणा प्रेम मानेंगे, किंतु आपके द्वार पर पहुँचने पर उनकी प्रीति सौ गुनी और आपको देख लेने पर सहस्रगुनी बढ़ जाएगी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुदामा-चरित (पृष्ठ 43)
    • संपादक : मोहनलाल 'रत्नाकार'
    • रचनाकार : नरोत्तमदास
    • प्रकाशन : ऋषभरचण जैन एवं सन्तति, नई दिल्ली-2

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