अरविंद पुंज गुंज डोर भौंर ही व्रती हलोर
arwind punj gunj Dor bhaunr hi wrati halor
अरविंद पुँज गुँज डोर भौंर ही व्रती हलोर,
ओर थोर ज्यों निसा चलन चंदनी।
निकुंज फूल मौल बेलि छाँह से धरे,
तटी कलोल कोक पुँज सोक संक दंदनी।
‘आलम’ कबित्त चित्त रास के विलास ते,
प्रकाश वंदना करी बिलोकि बिस्व-बंदनी।
समीर मंद मंद केलि कंद दोष दंद यो,
आनंद नंदनंद के बिराजे हंसनंदनी॥
जहाँ पर सदाचरण के व्रत को धारण करने वाले भौंरे कमलों के समूहों पर गुँजार करत डोल रहे हैं, यमुना की हिलोरों पर चारों ओर चाँदनी फैल रही है; ऐसे सुखकारी समय में वृंदावन के निकुंजों में मौलसिरी और मालवी की लताएँ मानो छाया की छत्र बनी हुई प्रतीत होती हैं। वहीं यमुना नदी के तट पर चकवों का समूह अपनी चकवियों के साथ मिलकर वियोग के दुःख को नष्ट कर रहे हैं। कवि आलम कहते हैं कि इस सुखदाई वातावरण में श्रीकृष्ण के रास के विलास में विश्व-वंदिनी यमुना को प्रत्यक्ष देखकर वंदना करता है, क्योंकि वह यमुना रास-क्रीड़ा में आनंदकंद श्रीकृष्ण के विराजमान रहने पर, सब दोषों को उसी प्रकार दूर कर देती है जिस प्रकार मंद वायु रास-क्रीड़ा में समस्त दूषित विचारों के समूहों को नष्ट करती है।
- पुस्तक : आलम ग्रंथावली (पृष्ठ 88)
- संपादक : विद्यानिवास मिश्र
- रचनाकार : आलम
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2015
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