और यह ऐसैं जानि ग्यान जो पदारथ है
aur ye aisain jani gyan jo padarath hai
और यह ऐसैं जानि ग्यान जो पदारथ है,
काहु कौ धरम नाँहि सबही तैं न्यारौ है।
देखियत जे जे ते तौ जड़ अरु मायिक है,
तिन की धरम ग्यान कैसैं होनहारौ है।
तोसौं हौं कहत फेर नाँही कछु यामैं फेर,
सब ग्रंथन मैं मत यहै निरधारौ है।
ग्यान जानि निजदेह आतमस्वरूप ही है,
यह सदा सुखरूप बिस्व कौ उजारो है॥
- पुस्तक : जसवंतसिंह ग्रंथावली (पृष्ठ 140)
- संपादक : विश्वनाथप्रसाद मिश्र
- रचनाकार : जसवंत सिंह
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी
- संस्करण : 1972
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