किसबी, किसान-कुल बनिक, भिखारी, भाट
kisbii, kisaana-kul banik, bhikhaarii, bhaaT
किसबी, किसान-कुल बनिक, भिखारी, भाट
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।
पेट को पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरी,
अटत गहन-गन अहन अखेट की॥
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।
‘तुलसी’ बुझाइ एक राम घनस्याम ही तें,
आगि बड़वागितें बड़ी है आगि पेट की॥
श्रमजीवी, किसान, व्यापारी, भिखारी, भाट, सेवक, चंचल नट, चोर, दूत और बाजीगर आदि सब पेट ही के लिए पढ़ते, अनेक उपाय रचते, पर्वतों पर चढ़ते और मृगया की खोज में दुर्गम वनों में विचरते हैं। सब लोग पेट के लिए ही ऊँचे-नीचे कर्म तथा धर्म-अधर्म करते हैं, यहाँ तक कि अपने बेटा-बेटी तक को बेच देते हैं। तुलसीदास कहते हैं कि यह पेट की आग बड़वाग्नि से भी बड़ी है; यह तो केवल एक भगवान राम-रूप श्याम मेघ के द्वारा ही बुझाई जा सकती है।
- पुस्तक : कवितावली (पृष्ठ 115)
- रचनाकार : तुलसी
- प्रकाशन : गीताप्रेस
- संस्करण : 2017
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