किधो मुख चंदे कला धरी है छिपाइ देखि
kidho mukh chande kala dhari hai chhipai dekhi
सूरति मिश्र
Surati Mishra
किधो मुख चंदे कला धरी है छिपाइ देखि
kidho mukh chande kala dhari hai chhipai dekhi
Surati Mishra
सूरति मिश्र
और अधिकसूरति मिश्र
किधो मुख चंदे कला धरी है छिपाइ देखि
दूनी द्विजराज हिये सहै ताप भारे है।
हिरन की पाँति हेम सपुट में धरी किंधो,
पूजाहित रमा द्विज रोह बयठारे हैं।
सुधा पिये जिये प्यारी बोल सुनि लिए ही ते,
यही ते वचार कवि, ‘सूरति’ विचारे हैं।
तेरी रसना में कोऊ अदभुत अमृत बसै,
मानो ताके आसपास बैठे रखवारे हैं॥
- पुस्तक : सूरति मिश्र का अज्ञात काव्य (पृष्ठ 102)
- संपादक : रामगोपाल शर्मा दिनेश
- रचनाकार : सूरति मिश्र
- प्रकाशन : रौशनलाल जैन एंड संस
- संस्करण : 1973
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