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कंत बिन भावत सदन ना जानि मोपै

kant bin bhawat sadan na jani mopai

श्रीपति

श्रीपति

कंत बिन भावत सदन ना जानि मोपै

श्रीपति

और अधिकश्रीपति

    कंत बिन भावत सदन ना जानि मोपै,

    बिरह प्रबल मैन कोप्यो अलि बाढ़ कै।

    ‘श्रीपति’ कलोलें बोले कोकिल अमोलें

    खोलें गौनि तोलें गौन राखें गाढ़ गाढ़ के॥

    हहरि हहरि हिय कहरि कहरि करि

    थहरि थहरि दिन बीते जाय माढ़ के।

    लहरि लहरि बीज फहरि आवैं

    घहरि घहरि उठैं बादर असाढ़ के॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी काव्य गंगा (प्रथम भाग) (पृष्ठ 247)
    • संपादक : सुधाकर पांडेय
    • रचनाकार : श्रीपति
    • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी

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