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कंचन भंडार पाय रंच न मगन हूजे

kanchan bhanDar pay ranch na magan huje

बनारसी दास

बनारसी दास

कंचन भंडार पाय रंच न मगन हूजे

बनारसी दास

और अधिकबनारसी दास

    कंचन भंडार पाय रंच मगन हूजे,

    पाय नवयोवना हूजे जो बनारसी।

    काल असिधारा जिन जगत बनाय सोई,

    कामिनी कनक मुद्रा दुहुं को बनारसी॥

    दोऊ विनाशी सदीव तूहै अविनाशी जीव,

    या जगत कूप बीच ये ही डोबनारसी।

    इनको तू संग त्याग कूप सों निकसि भाग,

    प्राणी मेरे कहे लाग कहत बनारसी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 203)
    • रचनाकार : बनारसीदास
    • प्रकाशन : वीर सेवा मंदिर सरसावा सहारनपुर
    • संस्करण : 1941

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