कंचन भंडार पाय रंच न मगन हूजे
kanchan bhanDar pay ranch na magan huje
कंचन भंडार पाय रंच न मगन हूजे,
पाय नवयोवना न हूजे जो बनारसी।
काल असिधारा जिन जगत बनाय सोई,
कामिनी कनक मुद्रा दुहुं को बनारसी॥
दोऊ विनाशी सदीव तूहै अविनाशी जीव,
या जगत कूप बीच ये ही डोबनारसी।
इनको तू संग त्याग कूप सों निकसि भाग,
प्राणी मेरे कहे लाग कहत बनारसी॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 203)
- रचनाकार : बनारसीदास
- प्रकाशन : वीर सेवा मंदिर सरसावा सहारनपुर
- संस्करण : 1941
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