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रति रनविषै जे रहे हैं पति सनमुख

rati ranvishai je rahe hai.n pati sanmukh

कालिदास त्रिवेदी

कालिदास त्रिवेदी

रति रनविषै जे रहे हैं पति सनमुख

कालिदास त्रिवेदी

और अधिककालिदास त्रिवेदी

    रति रनविषै जे रहे हैं पति सनमुख,

    तिन्हैं बकसीस बकसी है मैं विहंसि कै।

    करन को कंकन उरोजन को चंद्रहार,

    कटि को सुकिंकिनी रही है कटि लसिकै॥

    ‘कालिदास’ आनन को आदरसो दीन्हों पान,

    नैनन को कज्जल रह्यो है नैन बसिकै।

    एरी बौरी बार ये रहे हैं पीठ पीछे याते,

    बार-बार बांधति हौं बार-बार कसिकै॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी काव्य गंगा (प्रथम भाग) (पृष्ठ 236)
    • संपादक : सुधाकर पांडेय
    • रचनाकार : कालिदास त्रिवेदी
    • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी

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