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जननी समान जिन्ह जानी जानी है पराई नारि

janani saman jinh jani jani hai parai nari

रामगुलाम द्विवेदी

रामगुलाम द्विवेदी

जननी समान जिन्ह जानी जानी है पराई नारि

रामगुलाम द्विवेदी

और अधिकरामगुलाम द्विवेदी

    जननी समान जिन्ह जानी है पराई नारि,

    पर अपवाद पर वित्त सो रति है।

    सत्य प्रियभाषी साधु संग अभिलाषी सदा,

    विप्र-पद-प्रीति नीच संगति विरति है॥

    संपति विपति मध्य एकरस रहै सुधी,

    सबही सुखद हरिहर की भगति है।

    वदत 'गुलामराम' भरत प्रबोधे राम,

    लोक में सुजस परलोकहू सुगति है॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : कवित्त-रामायण (पृष्ठ 13)
    • संपादक : महावीरप्रसाद मालवीय वैद्य
    • रचनाकार : रामगुलाम द्विवेदी
    • प्रकाशन : बेलविडियर प्रेस, प्रयाग
    • संस्करण : 1924

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