जनम गंवायो वादि, जन तू सवादि विष
janam ganwayo wadi, jan tu sawadi wish
कुमारमणि भट्ट
Kumarmani Bhatt
जनम गंवायो वादि, जन तू सवादि विष
janam ganwayo wadi, jan tu sawadi wish
Kumarmani Bhatt
कुमारमणि भट्ट
और अधिककुमारमणि भट्ट
जनम गंवायो वादि जन तू सवादि विष,
विषयनि मादन विषादहू अघाइगौ।
कहत 'कुमार' सनसार है असार ताहि,
मानि सुख-सार अघ-औघनि हू छाइगौ॥
चंचल वंचक मन रचक न जान्यो कान्ह,
भव-पारावार बीच नीच तू समाइगौ॥
हरिनाम गुन को बिसारि, धारि आँगुन को,
घरी-घरी बूढ़ति घरी सी बूड़ि जाइगो॥
- पुस्तक : रसिक-रसाल (पृष्ठ 67)
- संपादक : पो० कंटमणि शास्त्री विशारद
- प्रकाशन : श्रीविद्या विभाग कांकरोला
- संस्करण : 1994
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