जढ़त तुरंग चतुरंग साजि सिवराज
jaDhat tura.ng chatura.ng saaji sivraaj
चढ़त तुरंग चतुरंग साजि सिवराज चढ़त प्रताप दिन-दिन अति अंग में।
भूषन चढ़त मरहट्ठ-चित्त चाउ चारु खग्ग खुली चढ़त है अरिन कै अंग में।
भ्वैसिला के हाथ गढ़-कोट है चढ़त अरि-जोट है चढ़त एक मेरुगिरि-सृंग में।
तुरकान-गन ब्योमजान है चढ़त बिन मान है चढ़त बदरंग अवरंग में॥
भूषण कवि कहते हैं कि जब शिवाजी अपनी चतुरंगिणी सेना को सजाकर अर्थात् अति उत्साह में भरकर घोड़े चढ़ते हैं तब उनके अंग-अंग में प्रतिदिन ही उनका प्रताप बढ़ता जाता है। भूषण कवि कहते हैं कि उनके मरहठी सैनिकों के मन में आगे बढ़ने का उत्साह चढ़ जाता है और उनकी तलवारें शत्रुओं के अंगों में खुलकर या बेरोक-टोक घुस जाती हैं। भौंसला राजा शिवाजी के हाथ में शत्रुओं के क़िले आ जाते हैं और शत्रुओं के समूह के समूह ऊँचे पहाड़ों की चोटियों पर चढ़ने लगते हैं। युद्ध-क्षेत्र में जो मुग़ल योद्धा मृत्यु को प्राप्त हो गए वे मान रहित होकर आकाशयान पर चढ़ते हैं अर्थात मृत्यु को प्राप्त होते हैं। उनके चले जाने पर औरंगज़ेब का रंग फीका हो जाता है।
- पुस्तक : भूषण ग्रंथावली (पृष्ठ 149)
- संपादक : आचार्य विश्वानाथ प्रकाशन मिश्र
- रचनाकार : भूषण
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2017
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