त्रिभुवन पति के हरित दुख देखत ही
tribhuwan pati ke harit dukh dekhat hi
त्रिभुवन पति के हरित दुख देखत ही,
सहज सुवास ऊँचे वास सोम रस है।
कोमल, सनेह सनी सुख बरसावै नित,
तीन हू बरन को प्रकट सु दरस है।
सब दिन एक सौ महातम है, ‘सूरति’ यों,
नागर सकल सुख-सागर परस है।
ऐरी मृग-नैनी पिक-बैनी सुख-दैनी अति,
तेरी यह बैनी तिरवैनी ते सरस है॥
- पुस्तक : सूरति मिश्र का अज्ञात काव्य (पृष्ठ 108)
- संपादक : रामगोपाल शर्मा दिनेश
- रचनाकार : सूरति मिश्र
- प्रकाशन : रौशनलाल जैन एंड संस
- संस्करण : 1973
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