ग्रीषम में धूप परै तामें भूमि भारी जरै
grisham mein dhoop parai tamen bhumi bhari jarai
भैया भगवतीदास
bhaiyaa bhagvatiidas
ग्रीषम में धूप परै तामें भूमि भारी जरै
grisham mein dhoop parai tamen bhumi bhari jarai
bhaiyaa bhagvatiidas
भैया भगवतीदास
और अधिकभैया भगवतीदास
ग्रीषम में धूप परै तामें भूमि भारी जरै,
फूलत है आक पुनि अतिहि उमहिकैं।
वर्षाऋतु मेघ झरै तामें वृक्ष केई फरै,
जरत जवासा अघ आपही तै डहिकै॥
ऋतु को न दोष कोऊ पुन्यपाप फलै दोऊ,
जैसे-जैसे किये पूर्व तैसे रहि सहिकैं।
केई जीव सुखी होहिं केई जीव दुखी होहिं,
देखहु तमासो 'भैया' न्यारे नैकु रहिकै॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 221)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : भैया भगवतीदास
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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