गेह तैं निकसि बैठि बेचत सुमनहार
geh tain nikasi baithi bechat sumanhar
गेह तैं निकसि बैठि बेचत सुमनहार,
देह द्युति देखि दीह दामिनि लजा करै।
मदन उमंग नव जोबन तरंग उठे,
वसन सुरंग अंग भूषण सजा करै॥
दत्त कवि कहै प्रेम पालन प्रवीनन सौं,
बोलत अमोल बैन बीन सी बजा करै।
गाजव गुज़ारती बज़ार में नचाय नैन,
मंजुल मजेज भरी मालिन मज़ा करै॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 484)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : दत्त
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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