द्वैक ही दिना तें है अजब छबि छाई कछु
dwaik hi dina ten hai ajab chhabi chhai kachhu
अंबिकादत्त व्यास
Ambikadatt Vyas
द्वैक ही दिना तें है अजब छबि छाई कछु
dwaik hi dina ten hai ajab chhabi chhai kachhu
Ambikadatt Vyas
अंबिकादत्त व्यास
और अधिकअंबिकादत्त व्यास
द्वैक ही दिना तें है अजब छबि छाई कछु,
कहि ना सकत कवि मनहू सकानो जात।
छाती उकसौंहैं त्यों कपोलहू हँसौहैं जुग,
नैन तरसौंहैं लखि जीय तरसानो जात॥
रोम-रोम माँहि भरमाई धौं लुनाई केती,
अंबादत्त हू को हिय हाय ललचानो जात।
हेरन हज़ार गुनी हरिनी की हेरन तें,
हेरत ही हेरत सु मो मन हिरानो जात॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 473)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : अंबिकादत्त व्यास
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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