द्वार रही ठाढ़ी तो, बिसासी' सासु मो रिसाइ
dvaar rahii ThaaDhii to, bisaasii' saasu mo risaa.i
गिरिधर पुरोहित
Giridhar Purohit
द्वार रही ठाढ़ी तो, बिसासी' सासु मो रिसाइ
dvaar rahii ThaaDhii to, bisaasii' saasu mo risaa.i
Giridhar Purohit
गिरिधर पुरोहित
और अधिकगिरिधर पुरोहित
द्वार रही ठाढ़ी तो, बिसासी' सासु मो रिसाइ,
नंनंद रिसाइ, पिछवारे जाइयतु है।
ऊझकैं झरूषां ब्रजवासी गुरुजने देषैं,
जिन केरे चित रैन-द्याँस आइयतु है।
पल-पल-पल मो कलप लौं बिहात जात,
दृग पूतरीन क्यों हूँ कै लिराइयतु है।
प्यारे गिरिधारी जू की सांवरी मूरति लौंनी,
लोकनि के आगै न बिलो क पाइयतु है॥
- पुस्तक : शृंगारमंजरी (पृष्ठ 86)
- रचनाकार : गिरिधर पुरोहित
- प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
- संस्करण : 1982
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