देह नाहीं इंद्री मन नाहीं नाहीं बुधि नाहीं
deh nahin indri man nahin nahin budhi nahin
जसवंत सिंह
Jasvant Singh
देह नाहीं इंद्री मन नाहीं नाहीं बुधि नाहीं
deh nahin indri man nahin nahin budhi nahin
Jasvant Singh
जसवंत सिंह
और अधिकजसवंत सिंह
देह नाहीं इंद्री मन नाहीं नाहीं बुधि नाहीं,
अहंकार चित नाहीं देखिबौ नहीं तहाँ।
कहिबौ कछू न जामें सुनिबे की बैत नाहीं,
धेय नाहीं ध्यान नाहीं ध्याता हू नहीं जहाँ।
गुरु और शिष्य नाहीं नाम रूप बिस्व नाहीं,
उतपति प्रलै नाहीं बध मोच्छ है कहाँ।
वचन कौ विषै नाहीं साख अरु बेद नाहीं,
और कहा कहो उहाँ ग्यान हु नहीं न हाँ॥
- पुस्तक : जसवंतसिंह ग्रंथावली (पृष्ठ 142)
- संपादक : विश्वनाथप्रसाद मिश्र
- रचनाकार : जसवंत सिंह
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी
- संस्करण : 1972
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