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चटपटी चाह अंग उपटे अनंग के री

chatpati chah ang upte anang ke ri

लछिराम

लछिराम

चटपटी चाह अंग उपटे अनंग के री

लछिराम

और अधिकलछिराम

    चटपटी चाह अंग उपटे अनंग के री,

    रंग रावटी ते काम नट की कुमारी-सी।

    कबि लछिराम राज-हंसनि सों मंद-मंद,

    परम प्रकासमान चाँदनी सँवारी-सी॥

    नागरि निकुंज में हेर्यौ ब्रजचंद मुख,

    रुख पै सहेली भई आँखे रतनारी-सी।

    भौंहन मरोरति, बिथोरति मुकुत हार,

    छोरति छरा के बद, रोष-मद ढारी-सी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : रीति श्रृंगार (पृष्ठ 239)
    • संपादक : डा० नगेंद्र
    • रचनाकार : लछिराम
    • प्रकाशन : साहित्य-सदन
    • संस्करण : 1963

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