भव भय और मैं भ्रमत भूले भूरि जेहैं
bhaw bhay aur main bhrmat bhule bhuri jehain
भव भय और मैं भ्रमत भूले भूरि जेहैं,
भटके न भेंटत भभरि जाको तीर है।
सुर मुनि नाग अनुराग सौं विविध विधि,
धारन करत वंदि महा मतिधीर है॥
लेखराज भाषत न राखत है पापछुधा,
उर अभिलाषत हरत भ्रम भीर है।
सेत शुभ शुद्ध सोह्वै स्वाद है सरस रस,
सुरसरी नीर ऐसो सुरभी को चीर है॥
- पुस्तक : गंगाभरण (पृष्ठ 5)
- रचनाकार : लेखराज मिश्र
- प्रकाशन : कृष्णविहारी मिश्र
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