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बैठे हैं गुपाल लाल प्यारी बर बालन में

baithe hain gupal lal pyari bar balan mein

चंद्रकला

चंद्रकला

बैठे हैं गुपाल लाल प्यारी बर बालन में

चंद्रकला

और अधिकचंद्रकला

    बैठे हैं गुपाल लाल प्यारी बर बालन में,

    करत कलोल महा मोद मन भरिगे।

    ताही समै आती राधिका को दूर ही ते देखि,

    सौतिन के सकल गुमान गुन जारिगे॥

    ‘चंद्रकला’ सारस से तिरछी चितौनि वारे,

    नैन अनियारे नैकु पी की ओर ढरिगे।

    नेह-नेह नायक के ऊपर ततच्छन ही

    तीच्छन मनो भव के पाँचों बान झरिगे॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिन्दी काव्य की कलामयी तारिकाएँ (पृष्ठ 72)
    • संपादक : श्रीयुत रामशंकर शुल्क 'रसाल'
    • रचनाकार : चंद्रकला
    • प्रकाशन : प्रमोद पुस्तक माला काटरा, प्रयाग
    • संस्करण : 1941

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