बाहन अभूत, ध्वज, सूत, धनु, पूत पुनि
bahan abhut, dhwaj, soot, dhanu, poot puni
गणेशपुरी पद्मेश
Ganeshpuri Padmesh
बाहन अभूत, ध्वज, सूत, धनु, पूत पुनि
bahan abhut, dhwaj, soot, dhanu, poot puni
Ganeshpuri Padmesh
गणेशपुरी पद्मेश
और अधिकगणेशपुरी पद्मेश
बाहन अभूत, ध्वज, सूत, धनु, पूत पुनि,
छात्र सुन पाती छबि सात्यकि सुहाये की।
भीष्म जय-भौन दृढ़ द्रौनी, द्रोन, कर्न, कृप,
कौन गौन कीर्ति नां बिराट जीत आये की?॥
तात सुख-बात कीनौं, बरम निवात बुध,
बीरता विख्यात है किरीटी नाम पाये की।
दान की लहर की तौ लहर दुरूह देखौ,
प्रात की पहर गी ठहर रवि-जाये की॥
अर्जुन के वाहन, केतु, सारथी, धनुष, पुत्र (अभिमन्यु) ये सब अपूर्व थे और शिष्य सात्यकि भी अद्भुत था। भीष्म जय का घर था। अश्वत्थामा, द्रोण , कर्ण, कृपाचार्य, ये मज़बूत थे। इन सब को विराट नगर में जीत कर आये हुए (अर्जुन) की कीर्ति कौन से प्रयाण में नहीं हुई, अर्थात जहाँ गया वहाँ ही हुई। वर्मनिवात नामक राक्षस को मार कर अर्जुन ने इंद्र के लिए सुखों का प्रबंध किया। मुकुट पाने से उसका नाम किरीट हुआ। उसकी वीरता प्रसिद्ध है। इन बातों से वीरता तो अर्जुन की अधिक पाई जाती है, परंतु कठिनता से विचार में आने वाला प्रातःकाल का प्रहर कर्ण के लिए प्रसिद्ध हो गया। सब लोग प्रातःकाल को कर्ण का समय कहते हैं, अर्जुन का नहीं।
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 492)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : गणेशपुरी पद्मेश
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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