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और सुनि सरीर कै बिषै चेष्टा जेतो कछु

aur suni sarir kai bishai cheshta jeto kachhu

जसवंत सिंह

जसवंत सिंह

और सुनि सरीर कै बिषै चेष्टा जेतो कछु

जसवंत सिंह

और अधिकजसवंत सिंह

    और सुनि सरीर कै बिषै चेष्टा जेतो कछु,

    तितनी सवैं प्रान बाय ही सौं जानिबी।

    और जु है ग्यान यह जातैं सब जान्यौ जात,

    प्रान कौ धरम नाँहि निसंदेह मानिबी।

    ग्यान मान्यौ चाहियै ही यामैं तौ विचार नाँही,

    जाही बिधि मान्यौ जाय सोई उर आनिबी।

    होइ समाधान अरु ऊतर रहै जामें,

    ग्यान की अवस्था ऐसी भाँति कै बखानिबी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : जसवंतसिंह ग्रंथावली (पृष्ठ 139)
    • संपादक : विश्वनाथप्रसाद मिश्र
    • रचनाकार : जसवंत सिंह
    • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी
    • संस्करण : 1972

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