अमर महेस सो प्रजेस सम विद्यावंत
amar mahes so prjes sam widyawant
रामगुलाम द्विवेदी
Ramgulam Dwivedi
अमर महेस सो प्रजेस सम विद्यावंत
amar mahes so prjes sam widyawant
Ramgulam Dwivedi
रामगुलाम द्विवेदी
और अधिकरामगुलाम द्विवेदी
अमर महेस सो प्रजेस सम विद्यावंत,
सेष सम सक्ति औ गनेस सम धी अपार।
रोम-रोम बदन-बदन प्रति कोटि जीह,
जीह प्रति कोटि-कोटि सारदा करै अगार॥
भूख-प्यास निद्रा-तंद्रा विगत वपुष जाको,
सावधान संतत बखान करै बार-बार।
वदत 'गुलामराम' सुनो महाराज राम,
रावरो सुजस सिंधु सोऊ नहीं पावै पार॥
- पुस्तक : कवित्त-रामायण (पृष्ठ 53)
- संपादक : महावीरप्रसाद मालवीय वैद्य
- रचनाकार : रामगुलाम द्विवेदी
- प्रकाशन : बेलविडियर प्रेस, प्रयाग
- संस्करण : 1924
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