अलबेली सुकुमारी नैननि के आगे रहै
albeli sukumari nainani ke aage rahai
अलबेली सुकुमारी नैननि के आगे रहै,
जब लगि प्रीतम के प्रान रहैं तन में।
यहै जिय जानि प्यारी रंच कौ न होत न्यारी,
तिनही के प्रेम रंग रँगि रही मन में॥
परम प्रवीन गोरी हाव-भाव में किशोरी,
नये-नये छबि के तरंग उठैं छिन में।
हित ध्रुव प्रीतम के नैन मीन रसलीन,
खेलिवो करत दिन प्रति रूप बन में॥
- पुस्तक : श्री बयालीस लीला (पृष्ठ 87)
- रचनाकार : ध्रुवदास
- प्रकाशन : श्री मुकुट महल, वृंदावन
- संस्करण : 1953
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