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ऐंठि बाँध्यौ मुकट समैंटि घुँघरारे बार

ainthi bandhyau mukat samainti ghunghrare bar

सूदन

सूदन

ऐंठि बाँध्यौ मुकट समैंटि घुँघरारे बार

सूदन

और अधिकसूदन

    ऐंठि बाँध्यौ मुकट समैंटि घुँघरारे बार,

    कुंडल चढाए कान कलगी सुघट की।

    जाँघिया जकरि कैं अकरि अंग राग करि,

    कटि में लपेटी कसि पेटी पीतपट की॥

    भृगु-पद-अंक ढाल सकति श्रिया कौ चिह्न,

    सूदन सनाह बनमाल लाल टटकी।

    कोटिन सुभट की निहारि मति सटकी,

    सुसुंदर गुपाल की धरनि भेष भटकी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुजान-चरित्र (पृष्ठ 254)
    • संपादक : श्री राधाकृष्णदास
    • प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, काशी
    • संस्करण : 1980

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