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अधो मुख बास दस मास अवकास नहिं

adho mukh bas das mas awkas nahin

धरनीदास

धरनीदास

अधो मुख बास दस मास अवकास नहिं

धरनीदास

और अधिकधरनीदास

    अधो मुख बास दस मास अवकास नहिं,

    जठर में अनल की आँच बारी।

    बालपन बीति गौ तरुनपन तेज भौ,

    परे बिष स्वाद धन धाम नारी॥

    वृद्धपन आइ गौ चौंकि चित चेत भौ,

    बिना जगदीस जम त्रास भारी।

    बूझी मन देख तोहिं सूझि कछु परत नहिं,

    धरनी तजि चलै गो हाथ भारी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 31)
    • रचनाकार : धरनीदास
    • प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
    • संस्करण : 1931

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