सावन की सांझ की सोहावनी यै ठौर तहाँ
sawan ki sanjh ki sohawni yai thaur tahan
साबन की सांझ की सोहाबनीयै ठौर तहां,
जूही जाही थेलि बौरि फूलि बन छाइहै।
आलम पवन पुरवैया को परस पाछे,
सीरी आये रसिक सरस सरसाइहै।
आली चहि चूनरि पद्विरि हरियारी भूमि,
तेरे चमकत चपलाऊ चपि जाइहै।
औरनि के आये बनि और आइहै सुपुनि,
हौं तो आइहौ न यह बेरौ पनि आइहै॥
- पुस्तक : आलम-केलि (पृष्ठ 10)
- संपादक : भगवानदीन
- रचनाकार : आलम
- प्रकाशन : उमाशंकर मेहता
- संस्करण : 1922
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