संपत्ति के बढ़े सो प्रतिष्ठा बाढै-बाढै सोच
sampatti ke baDhe so pratishtha baDhai baDhai soch
रघुनाथ बंदीजन
Raghunath Bandijan
संपत्ति के बढ़े सो प्रतिष्ठा बाढै-बाढै सोच
sampatti ke baDhe so pratishtha baDhai baDhai soch
Raghunath Bandijan
रघुनाथ बंदीजन
और अधिकरघुनाथ बंदीजन
संपत्ति के बढ़े सो प्रतिष्ठा बाढै-बाढै सोच,
कहै रघुनाथ ताके राखिवे के रुख को।
मन माँगे स्वादिन लपेटि पेट पर्यो तासो,
अंग में अपार संग प्रगटी कलुष को॥
दारा सुत सखा को सनेह सो संतापकारी,
भारी है वचन यह बडन के मुख को।
जगत को जितनो प्रपंच तितनो है दुख,
सुख इतनो जो सुख मानि लेनो दुख को॥
- पुस्तक : कविता-कौमुदी, पहला भाग (पृष्ठ 423)
- संपादक : रामनरेश त्रिपाठी
- रचनाकार : रघुनाथ बंदीजन
- प्रकाशन : नार्दर्न इडिया पब्लिशिग हाउस, दिल्ली
- संस्करण : 1946
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.