ए हो नंदलाल ऐसी व्याकुल परी है बाल
e ho nandlal aisi wyakul pari hai baal
ए हो नंदलाल ऐसी व्याकुल परी है बाल,
हाल ही चलौ तौ चलौ जोरि जुरि जायगी।
कहैं ‘पद्माकर’ नहीं तौ ये झकोरै लगैं,
ओरे-लौं अचानक बिन घोरे घुरि जायगी॥
सीरे उपचारन घनेरे घनसारन को,
देखत ही देखौ दामिनी लौं दुरि जायगी।
तौ ही लग चैन जौ लौं चेती है न चंदमुखी,
चेतैगी कहूँ तौ चाँदनी में चुरि जायगी॥
हे कृष्ण! तुम्हारे वियोग में व्यथित वह ब्रजबाला इस प्रकार पड़ी हुई है कि अगर तुम उसके पास अभी चलोगे तो आपकी जोड़ी मिल जाएगी, नहीं तो उसकी मृत्यु समीप ही समझिये। अगर तुम अभी नहीं चले तो वियोग की अग्नि की तेज लपटों और हवा के झोंकों से वह ओले की तरह शीघ्र ही बिना घोले ही घुल जाएगी। अगर-कपूर-चंदन आदि ठंडे उपचारों को अपनाने की बात तुमने सोची, तो इन उपचारों को देखते ही वह बिजली की तरह छिप जाएगी। चंद्रमा के समान मुख वाली उस ब्रजबाला को शांति उसी समय तक मिल रही है, जब तक कि वह होश में नहीं आ जाती। अगर वह कहीं होश में आ गई और आप उसके समीप नहीं हुए तो वह चाँदनी में चुरा ली जाएगी, अर्थात सबके देखते-देखते ही प्राणों का त्याग कर देगी।
- पुस्तक : पद्मावत पंचामृत (पृष्ठ 211)
- संपादक : विश्वनाथप्रसाद मिश्र
- रचनाकार : पद्माकर
- प्रकाशन : श्री रामरत्न पुस्तक भवन, काशी
- संस्करण : 1992
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